दमा (अस्थमा) को ऐसे पहचानें आसानी से
दमा रोग में रोगी को अचानक दौरे पड़ते हैं जिसकी वजह से स्वांस लेने में बहुत कष्ट होता है और शरीर में विशेष प्रकार की बैचैनी और उथल पुथल मच जाती है। जब रोगी को साँस का प्रकोप अत्यधिक परेसान करता है तो उसके मुँह से स्वांस लेते समय सीटी की आवाज आती है। ऐसी स्थिति इसलिए बनती है क्योंकि ब्रोंकियल रास्ते में सिकुड़न आ जाती है जोकि स्वांस नली की माँसपेशियों के संकुचन व् श्लेष्मा झिल्ली की सूजन या बलगम के इकठ्ठा होने से उत्पन्न होती हैं। इसी वजह से रोगी का साँस फूलने लगता है।

दमा के लक्षण :
जिन व्यक्तियों में यह बीमारी पाई जाती है उनमें निम्न प्रकार के लक्षण दिखाई देते हैं –
- रोगी जब साँस लेने के बाद बाहर की तरफ छोड़ते हैं तो सीटी जैसी आवाज या सांय सांय या घुर्र घुर्र की आवाज सुनाई देना और खाँसी उठना दमा के विशेष लक्षण हैं।
- इसके लक्षण हर समय आसानी से दिखाई नहीं देते हैं बल्कि उसी समय सामने आते हैं जब दौरा उठता है। यह परेशानी कुछ घंटों या दिनों तक रोगी की नाक में दम कर देती है। लेकिन इसके बाद रोग शांत हो जाता है और रोगी को स्वांस लेने में राहत मिल जाती है।
- किसी किसी मरीज को कई हफ्तों तक दम उखड़ती रहती है। इस रोग में रोगी को दौरे के समय हाल बेहाल हो जाता है। परन्तु कुछ मरीज किस्मत वाले होते हैं और उनमें रोग दौड़ भाग करने पर साँस फूलने और खाँसी उठने तक ही सीमित रहता है।
- लगभग 50% से ज्यादा मरीजों को जुकाम होने, छींके आना, पित्ती उठ आने आदि की सिकायत भी होती है।
- किसी भी रोग में कभी कभी हालत अचानक ही बिगड़ जाती है। ऐसा लगता है जैसे मानो साँस घुट रही हो। गर्दन की मांसपेशियां तक सांस लेने की कोशिश में उभर हुयीं दिखाई देने लगतीं हैं। लेकिन साँस लेने में बहुत ही ज्यादा मुस्किल होती है।
- ऐसे रोगियों की हांफते हांफते छाती में दर्द होने लगता है। मुँह से कुछ बोल भी नहीं पाते। वैसे ये देखा गया है कि दमा खांसी में ज्यादातर दौरे रात के समय में पड़ते हैं जिससे मुस्किल और ज्यादा बढ़ जाती है। लेकिन दवा के इंजेक्शन लगने और ऑक्सीजन मिलने से प्रायः कुछ ही देर में आराम मिल जाता है।
विशेषज्ञों के अनुसार ब्रोंकियल दमा दो प्रकार से होता है –
- अचानक दमा (Episodic Asthma) :- इस तरह स्वांश रोग में अचानक दौरा पड़ता है। रोगी को बार बार खाँसी, साँस लेने में प्रॉब्लम, साँस छोड़ते समय सीटी या घरघराहट की आवाज आती है, छाती में जकड़न, घुटन एवं गले की नशें फूल जातीं हैं।
- जीर्ण दमा (Chronic Asthma) :- इसमें रोगी साँस हमेशा फूलता रहता है, छाती में सीटी या घरघराहट जैसी आवाज लगातार आती रहती है।
दमा या सांस फूलने के कारण :
- कुछ लोगों में स्वांस नालियां असमान्य रूप से संवेदनशील होतीं हैं। कई तरह की परिस्थितियों में उनमें इसी से सिकुड़न आ जाती है और दमा पैदा हो जाता है।
- कुछ रोगियों में स्वांस नालियों की यह उत्तेजनशीलता पूर्ण रूप से एलार्जीजन्य होती है। जुकाम, एग्जिमा और पित्ती के दौरे भी समय समय पर तकलीफ देते रहते हैं।
- कभी कभी रोग साधारण सर्दी जुकाम से शुरू होता है और बाद में दमा के लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं।
- लकड़ी का बुरादा, पेंट, रासायनिक घोल और प्लास्टिक से सामना होने पर यह रोग पैदा हो सकता है।
- जोर से हंसने, क्रोधित होने और ज्यादा दुखी होने से भी एकदम से यह सांस की बीमारी पैदा हो जाती है।
- ठंडी हवा में शारीरिक कसरत करने, पहाड़ों पर चढ़ना, दौड़ लगाना, बर्फ पर स्केटिंग करने आदि से भी यह बीमारी उत्पन्न हो जाती है।
- सर्दी जुकाम और गले में सूजन पैदा करने वाले कई तरह के बैक्टीरिया और वायरस भी इस रोग को उत्पन्न कर सकते हैं।
- इस रोग को उत्पन्न करने में मौषम का भी एक अहम् रोल होता है जैसे वायु प्रदूषण शीत ऋतू में इस रोग को उत्पन्न करने में विशेष सहायक होता है।
- कुछ मरीजों में किसी खास फल, सलाद और वाइन से भी दौरा पड़ जाता है।
- बिस्कुट, केक और बेकरी की अन्य चीजों, अचार, जैम, सॉस और कई डिब्बा बंद चीजों में डलने वाले रसायन इत्यादि भी इस गंभीर बीमारी को उत्पन्न कर सकते हैं।
- कुछ खास दवाएं और खान पान में उपयोग होने वाले केमिकल भी इस रोग को उत्पन्न कर सकते हैं। एस्प्रिन, नेप्रोकसेन, आईब्यूप्रोफेन जैसी बहुत सी दर्द और सूजन दूर करने वाली दवाएं भी दमा रोग को उत्पन्न करतीं हैं।
- एलर्जी वाले पेड़ पौधे जैसे खरपतवार, पेड़ पौधों के परागकण, फंफूद, जीव जन्तुयों की झड़ी हुयी खाल जैसी सामान्य चीजें लगभग एक तिहाई मामलों में दमा रोग का कारण बनती हैं।
दमा की पहचान के लिए जरुरी टेस्ट :
इस रोग को लक्षणों के द्वारा इसको आसानी से पहचाना जा सकता है जिनके बारे में मैंने ऊपर जिक्र किया हुआ है। फेंफड़ों की साँस लेने की क्षमता को आंकने वाले पलमोनरी फंक्शन टेस्ट (P.F.T.) करवाना बहुत जरुरी होता है।
इसके अलावा ब्लड की जाँच करने पर इओसिनोफिल और श्वेत रक्त कोशिकायों की संख्या बढ़ी हुयी मिलती है। इन दोनों टेस्ट के द्वारा साँस की बीमारी का पता लगाया जा सकता है।
दमा रोगी के लिए सावधानियां :
यदि घर के अन्दर साँस की बीमारी गंभीर रूप धारण करती रहे तो रोगी को बाहर खुले में ले जाएँ जिससे उसे स्वच्छ हवा मिल सके।
रोगी को हमेशा ऐसी चीजों से दूर रहना चाहिए जिनसे रोग बढ़ता हो जैसे व्यायाम या अन्य कोई दवा। यदि रोग किसी संक्रमण से है तो कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे उसका संक्रमण में बढ़ोतरी न हो सके।
ऐसे मरीज को तरल पदार्थों की काफी मात्रा देते रहना चाहिए। जिससे उसकी बलगम ढीली होती है और व्यक्ति आसानी से साँस लेने लगता है। खौलते हुए पानी की भाप सूंघने से भी आराम मिल जाता है। ऐसे रोगियों को सुलाने वाली या नशीली दवायों का प्रयोग करना बिल्कुल गलत होता है।
दमा के रोगी के लिए परहेज :
इस तरह के मरीज को रोग का विकराल प्रकोप न झेलना पड़े उसके लिए उसे अपने खान पान पर मजबूती के साथ ध्यान देना आवश्यक होता है।
- ऐसा खाना जो म्यूकस को बढ़ाते हैं जैसे – खट्टे फल, अचार, चटनी व् कोल्ड्रिंक्स इत्यादि से सर्वथा दूरी बनाकर रहना चाहिए।
- ऐसे रोगी को शाम के समय हल्का खाना देना चाहिए, गुनगुना पानी पीना लाभदायक होता है।
- स्वांस के रोगी को खुराक में विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। उसे रात्रि को हमेशा सूर्यास्त होने से पहले ही एवं जितनी भूख लगी हो उससे कम ही आहार का सेवन करना ज्यादा हितकर होता है।
- ऐसे रोगी को अपनी पाचन शक्ति को ध्यान में रखकर ही भोजन करना चाहिए क्योंकि यदि कब्ज या अजीर्ण दमा रोगी के लिए बहुत ही खतरनाक हो सकते हैं।
- सुबह और शाम मन्दाग्नि चूर्ण तथा भोजन के बाद थोड़ा आराम करना चाहिए उसके बाद ही टहलने जा सकते हैं।
- स्वसन क्रिया को और ज्यादा बेहतर करने के लिए नियमित रूप से स्वसन से सम्बंधित व्यायाम करते रहना चाहिए।