पेचिश रोग (आंव) का अचूक समाधान
Pechis :- जब किसी व्यक्ति पेट में मरोड़ और आँतों में ऐंठन होती है और इसके साथ साथ उसे मल त्याग करने की तीव्र इच्छा होती है तो वह मल त्याग करने के लिए शौचालय जाता है और मल त्याग करते समय भी बहुत तेज मरोड़ होती है तो ऐसी प्रॉब्लम को ही पेचिश या प्रवाहिका कहा जाता है। ऐसे मरीज के मल में मवाद जैसे सफेद थक्के निकलते हैं। यदि ऐसी परिस्थिति किसी भी व्यक्ति के साथ बनती है तो उसे समझ लेना चाहिए कि उसे पेचिश की बीमारी हो गयी है जिसे जल्दी ठीक करना उसके लिए ज्यादा हितकारी रहेगा।

पेचिश की रोकथाम कैसे की जाती है ?
- हर एक व्यक्ति को शौचालय जाने के तुरंत बाद अपने हाथों को साबुन से अच्छी तरह साफ करना चाहिए।
- भोजन ग्रहण करने से ठीक पूर्व अपने हाथों को साबुन से अच्छी तरह धोना चाहिए।
- कच्चे साग सब्जियों का सेवन ज्यादा मात्रा में बिल्कुल नहीं करना चाहिए।
- यदि घर में किसी को पेचिस की समस्या हो तो उसके कपड़े अन्य लोगों से दूर रखने चाहिए अन्यथा इसका वायरस संपर्क में आने वाले लोगों को भी बीमार कर देगा।
- अपने नाखूनों को समय समय पर काटते रहना बहुत जरुरी है पेचिस की रोकथाम के लिए।
- प्रवाहिका से बचने के लिए साफ सुथरे और छने हुए पानी का ही सेवन करना चाहिए।
पेचिश रोग के प्रकार:
प्रवाहिका रोग दो प्रकार का होता है जो निम्नलिखित हैं –
1. अमीबिक पेचिश – इसे खूनी पेचिश भी कहा जाता है। यह बीमारी मनुष्य की बड़ी आंत में एंटामीबा हिस्टोलिटिका नाम के वायरस के संक्रमण से उत्पन्न होता है। इसमें रोज 4-5 बार दस्त लगते हैं।
इसके साथ ही बहुत ज्यादा मात्रा में आये पतले दस्त के साथ काला और लाल खून ज्यादातर देखने को मिलता है। इस बीमारी की एक खासियत ये है कि इसमें पीड़ित को बार बार मल के साथ आँव भी आता है और पेट में मरोड़ भी होती है।
खूनी पेचिश के लक्षण –
- ऐसे मरीज के मल में श्लेषमा अधिक रूप से पाया जाता है और थोड़ी सी मात्रा खून की भी पाई जाती है।
- ऐसे रोगी को बहुत ज्यादा दुर्गन्धयुक्त दस्त लगते हैं जिसमें कभी कभी आँव और रक्त नहीं पाया जाता।
- ऐसे व्यक्ति को ज्यादा दिनों से मल में खून और आँव की सिकायत होती है।
- ऐसे रोग से पीड़ित व्यक्ति को कब्ज की परेशानी भी होती है।
2. बेसिलरी पेचिस – यह प्रवाहिका न होकर एक तरह से दस्त ही हैं जो बहुत ही खतरनाक होता है। इस बीमारी के उत्पन्न होने का कारण अंडाणु होते हैं। इसमें बहुत तीव्र बुखार आता है। इस रोग से ग्रसित रोगी को दिन में 10-20 या इससे भी ज्यादा बार दस्त लगते हैं।
इसमें पेट में एंठन के साथ तेज दर्द होता है। ऐसे मरीज के पतले मल में म्यूकस के साथ खून भी देखा जाता है। इस प्रकार के रोगी को मरोड़ उठने के साथ ही 102 F के आसपास फीवर रहता है। इसमें रोगी बहुत ज्यादा बार मलत्याग करने की वजह से अन्दर से कमजोर महशूश करता है।
बेसिलरी पेचिश के लक्षण –
- यह रोग ज्यादातर नयी उम्र के युवायों को होता है। पहले उन्हें पेट दर्द और लूज मोशन की सिकायत होती है और इसके साथ ही बुखार भी बहुत ही ज्यादा तेज होता है।
- इस रोग से पीड़ित मरीज बार बार मल त्याग करने जाता रहता है जिसमें शेल्ष्मा के साथ साथ रक्त भी कुछ हद तक दिखाई देता है।
- ऐसा रोगी बार बार अपने पेट को दबाते रहता है क्योंकि उसे ऐसा करने पर क्षणिक आराम महशूश होता है।
पेचिश के कारण:
इतना तो हम और आप जानते ही हैं कि किसी भी रोग के अपने अपने कारण होते हैं जिनकी वजह से वो रोग उत्पन्न होता है। इसी तरह प्रवाहिका रोग होने के भी कुछ प्रमुख कारण होते हैं जो निम्न प्रकार हैं –
- यदि किसी व्यक्ति के लीवर में खराबी है तो यह सबसे बड़ा पेचिश का कारण होता है।
- जो व्यक्ति समय समय पर भोजन नहीं करते या उनके भोजन करने का कोई नियम नहीं है तो ऐसे लोगों को इस तरह का रोग होना आम बात होती है।
- जिन लोगों की पाचन क्रिया खराब रहती है उन्हें भी यह परेशानी होने का बहुत ज्यादा खतरा बना रहता है।
- जब किसी व्यक्ति को लूज मोशन की सिकायत हो जाती है और वो उसे ठीक करने के लिए उचित इलाज नहीं करवाता है तो उसे आगे चलकर पेचिश का मरीज बनना पड़ता है।
- यदि किसी व्यक्ति को काफी समय से दस्त लगते रहे हों जिसके लिए उसने समय पर कोई दवा न ली हो अथवा दस्त रुक जाने के बाद भी पाचन तंत्र को ठीक करने के लिए आवश्यक कदम न उठाये जाएँ तो पेचिश रोग उत्पन्न होने का खतरा बढ़ जाता है।
- जो व्यक्ति अत्यधिक तीखा, मशालेदार और बहुत ज्यादा तला हुआ चटपटा भोजन पसंद हो और वो नियमित रूप से ऐसे ही आहार का सेवन करता रहे तो उसे भी यह बीमारी हो जाती है।
- जो लोग अपने भोजन में डालडा का उपयोग सर्वाधिक रूप से और लगातार करते हैं उन्हें यह रोग सबसे ज्यादा होता है।
- जिन लोगों का ज्यादातर पेट साफ नहीं होता या मल साफ नहीं उतरता उन्हें भी पेचिश की समस्या से गुजरना पड़ता है।
पेचिश के लक्षण:
अब में आपको इस रोग की पहचान करने के बारे में बता देता हूँ जिससे आप भी आसानी से पहचान पाएंगे कि इस रोग में रोगी के क्या लक्षण होते हैं। इस बीमारी के लक्षण निम्नलिखित हैं –
- ऐसे रोगी के शरीर से बहुत ही ज्यादा दुर्गन्ध आती है, यही पेचिश के रोगी की मुख्य पहचान होती है।
- पेट में अजीब सा दर्द होता है और बार बार मल त्याग के लिए जाना पड़ता है।
- ऐसे मरीज को भूख नहीं लगती है और पेट में अफारा सा लगा रहता है।
- इस रोग से पीड़ित व्यक्ति के पेट में मरोड़ और आँतों में एंठन मल त्याग करते समय होती है।
- ऐसे रोग से ग्रसित रोगी को मल त्याग करने के लिए जोर लगाना पड़ता है तब जाकर कहीं थोड़ा सा मल निकलता है।
- ऐसे रोगी के मल के साथ मवाद जैसा दिखाई देने वाला पदार्थ भी निकलता है।
- जिस आदमी को ये पेचिश की बीमारी होती है वह बार बार मल त्याग करता रहता है।
- यदि रोगी पेशाब करने जाता है तब भी अचानक से उसे मल विसर्जन की तीव्र इच्छा होने लगती है जिसके बाद उसे शौचालय का प्रयोग करना ही पड़ता है।
- ऐसा रोगी सदैव लेटना पसंद करता है उसका किसी भी काम में बिल्कुल मन नहीं लगता है।
- ऐसा मरीज जब मलत्याग करके उठता है तो उसके पैरों में दर्द होता है और वो खुद को बेहद कमजोर महशूश करता है।
- पेचिश का घरेलू इलाज:
- ऐसी बहुत सी पेचिश की देशी दवा हैं जिन्हें आप घर पर ही तैयार कर सकते हैं और उन्हें सेवन करके इस रोग से मुक्ति पा सकते हैं जिन्हें हम नीचे बता रहे हैं –
- 20 ग्राम फिटकरी और 2 ग्राम अफीम दोनों को बारीक पीसकर अच्छी तरह मिला लें और किसी काँच की शीशी में भरकर रख लें। अब इस चूर्ण को एक चौथाई चम्मच के हिसाब से प्रतिदिन सुबह खाली पेट सेवन करें। कुछ ही दिन के सेवन करने से पेचिस की बीमारी से निजात मिल जाएगी। इसे सबसे बढ़िया पेचिश का घरेलू उपचार माना जाता है।
- 10 से 20 ग्राम तुलसी के पत्तों का रस प्रतिदिन लगातार कुछ दिनों तक खाली पेट पीने से प्रवाहिका रोग नष्ट हो जाता है इसे भी बहुत अच्छी पेचिश की दवा के रूप में जाना जाता है।
पेचिश में क्या खाएं:
जितनी प्रवाहिका रोग के लिए दवायों की जरुरत होती है ठीक उतनी ही इस बीमारी में परहेज की भी आवस्यकता होती है ये एक दूसरे के पूरक होते हैं इनमें से किसी एक भी चीज को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता –
- गुड़, तेल, घी इत्यादि का सेवन करना पूर्णतः वर्जित है।
- सिगरेट, गुटखा, शराब इत्यादि का सेवन करना भी निषेध होता है।
- ऐसे रोगी को किसी भी ऐसे फल का सेवन नहीं करना चाहिए जिनमें थोड़ी सी भी खटास पायी जाती हो जैसे नीबू, संतरा, आम इत्यादि।
- तेज मिर्च मशालेदार आहार का सेवन भूलकर भी नहीं करना चाहिए।
- ऐसे मरीज को गरिष्ठ भोजन करने से हमेशा बचना चाहिए।