प्लीहा का सही इलाज-तिल्ली रोग के कारण
प्लीहा या तिल्ली जिसे अंग्रेजी में spleen भी कहा जाता है मानव शरीर के अन्दर एक विशेष प्रकार का अंग होता है जो सभी रीढधारी प्राणियों में पाया जाता है। मनुष्य के शरीर में तिल्ली पेट में होता है जो पुरानी लाल रक्त कोशिकायों को खत्म करने का काम करता है। यह रोग प्रतिरोधक तंत्र का एक महत्वपूर्ण भाग होता है। मलेरिया, काला ज्वर, प्लीहा में रक्त इकठ्ठा होने से खून दूषित, ह्रदय रोग, टाईफायड में या इसके पश्चात अधिक पानी पीने से प्लीहा वृद्धि हो जाती है और शरीर के बायीं तरफ की पसलियों के नीचे हाथ लगाने से तिल्ली बढ़ी हुयी प्रतीत होती है और फिर सारे पेट में फैल जाती है जिसकी वजह से पेट बड़ा हो जाता है।

प्लीहा क्या है या तिल्ली क्या है ?
यह शरीर के सबसे बड़ी ductless gland होती है जो पेट के उपरी भाग में बाईं ओर आमाशय के पीछे स्थित रहती है। इसकी आतंरिक संरचना संयोजी ऊतक तथा स्वतंत्र मांसपेसियों से बनी हुयी होती है। इस अंग के अन्दर प्लीहा वस्तु संचित रहती है, जिसमें बड़ी बड़ी प्लीहा कोशिकाएँ एवं जालक कोशिकाएँ होतीं हैं।
प्लीहा के कार्य (Pliha Ke Karya):
- यह पाचक नलिका रक्तवाहिनियों के कोष का कार्य करती है क्योंकि आहार के पाचन के समय यह संकुचित होकर पाचन के लिए रुधिर को बाहर भेजती है।
- इसका यूरिक अम्ल के निर्माण में विशेष योगदान होता है।
- यह प्रोटीन के उपापचय metabolism में अपना विशेष कार्य करती है।
- इसमें से अन्तःस्त्राव निकलता है जो अमाशय ग्रन्थियों को उत्तेजित करता है।
- इसमें रुधिरकणों का विघटन होता है जिसकी वजह से प्लीहा में लौह की मात्रा अधिक पाई जाती है।
तिल्ली रोग के कारण या प्लीहा के बढ़ने के कारण:
किसी भी व्यक्ति के शरीर में तिल्ली का बढ़ना निम्नलिखित कारणों से हो सकता है –
- यदि किसी व्यक्ति को ल्यूकीमिया जिसे रक्त कैंसर कहा जाता है की सिकायत है तो ऐसी स्थिति में प्लीहा वृद्धि होना लाजमी होता है।
- बवासीर का खून रुक जाना भी इस रोग का सबसे बड़ा कारण होता है।
- यदि किसी व्यक्ति को काला बुखार है तो उसे तिल्ली रोग की समस्या हो सकती है।
- ह्रदय रोग भी इस बीमारी का सबसे बड़ा कारण माना जाता है।
- यदि शरीर में मलेरिया अथवा टाईफायड का विष प्रवेश कर जाये तो तिल्ली बढ़ जाती है।
- बुखार में शीत अवस्था में प्लीहा में रक्त इकठ्ठा होने पर यह बढ़ जाया करती है।
प्लीहा या तिल्ली का बढ़ना लक्षण:
यदि किसी व्यक्ति को यह बीमारी होती है तो उसकी पहचान निम्नलिखित लक्षणों के अनुसार की जा सकती है –
- तिल्ली के बढ़ने पर रोगी को भूख कम लगती है।
- ऐसे मरीज को हमेशा कब्ज बनी रहती है जिसकी वजह से लूज मोशन की समस्या भी होती रहती है।
- ऐसे रोगी के शरीर में बहुत कमजोरी आ जाती है और थोड़ा थोड़ा बुखार रहता है एवं खून की कमी भी स्पष्ट देखी जाती है।
- कुछ रोगियों में प्लीहा बहुत ज्यादा बढ़ जाती है और नीचे की तरफ जननेंद्रिय की जड़ तथा दाहिनी तरफ नाभि को पार करके इतनी ज्यादा बढ़ जाती है कि लगभग सारा पेट ही फूल जाता है।
- ऐसे रोगी के विभिन्न भागों में रक्तस्त्राव होना स्टार्ट हो जाता है।
- इस रोग की प्रारंभिक अवस्था में हल्का फीवर, खून की कमी, बदहजमी की समस्या, कब्जियत की प्रॉब्लम, मसूड़ों का फूलना और उनमें से खून निकलना इत्यादि लक्षण देखे जाते हैं।
- इस रोग से पीड़ित व्यक्ति को खून की उल्टियाँ होने की प्रॉब्लम विशेष रूप से देखी जाती है। यह ब्लड आहार नलिका में स्थित शिरायों के फट जाने के कारण निकलता है, जिसका मूल कारण तिल्ली का बढ़ना होता है। क्योंकि प्लीहा के बढ़ने पर यह शिराएँ फूल जातीं हैं।
- रक्तस्त्राव हो जाने की वजह से मरीज का शरीर पीला पड़ जाता है और उसे अनीमिया की सिकायत हो जाती है।
- इस रोग की चिकित्सा में देरी होने पर रोगी का पेट बहुत ज्यादा फूलने लगता है।
- ऐसे रोगी को हल्का हल्का बुखार, अरुचि, वायु विकार, अग्निमांद, धातुक्षय इत्यादि विकार भी उत्पन्न हो जाते हैं।
- सही समय पर सही उपचार न मिलने की वजह से अंत में खून के दस्त और सारे शरीर में सूजन आने लगती है और रोगी की म्रत्यु हो जाती है।
तिल्ली के रोगी या प्लीहा के मरीज को क्या करना चाहिए ?
तिल्ली वृद्धि के रोगी को सुबह शाम भुने हुए चने चबाना चाहिए और सूर्योदय होने से पूर्व रोगी के पेट पर या प्लीहा के स्थान पर मख्खन को मलना चाहिए। इसके पश्चात रुई से भिलावे के तेल को प्लीहा के ऊपर कुछ समय मलें।
इस प्रकार मख्खन लगे हुए भुने चने सुबह शाम दोनों टाइम सेवन करना, मख्खन की मालिश करना, तथा भिलावे के तेल में रुई भिगोकर तिल्ली पर मलें। इन तीनो प्रयोगों को एक साथ उपयोग करना है।