हैजा रोग कैसे फैलता है, लक्षण एवं कारण

हैजा रोग किससे होता है? यह एक ऐसा रोग है मख्खियों के द्वारा महामारी के रूप में फैल जाता है। इसे विशूचिका, कॉलरा नामों से भी पुकारा जाता है। जब किसी व्यक्ति को यह बीमारी होती है तो मरीज को उल्टी और दस्त होने लगते हैं और इसके साथ साथ पिंडलियों में एंठन होने लगती है। हैजा की बीमारी कॉलरा वीब्रियो नामक वायरस द्वारा उत्पन्न होती है। असल में देखा जाये तो आज का खान पान ही बहुत से रोगों को उत्सर्जित करता है। आज के समय में फास्टफूड की बहुत ज्यादा डिमांड है फिर चाहे वो सेवन करने के लायक भी क्यों न हो।

हैजा रोग कैसे फैलता

इसलिए हमेशा बाहर के खाद्य पदार्थों को जितना हो सके उतना सेवन करने से बचाना चाहिए और सिर्फ घर पर बना हुआ संक्रमण रहित भोजन और शुद्ध पानी का ही सेवन करना ज्यादा उचित होता है। हैजा का अंग्रेजी नाम कॉलरा (Cholera) है।

लेकिन घर पर बने हुए भोजन सामग्री को पूर्ण स्वच्छता के साथ रखना चाहिए और जितना हो सके कीट पतंगों और मख्खियों से बचाकर रखना चाहिए। हमेशा ढंके हुए या ताजे भोजन और पानी को ही ग्रहण करना ज्यादा हितकर होता है न कि बासी आहार सामग्री और दूषित पानी।

हैजा रोग के कारण (Haija Rog Ke Karan):

जैसा कि में ऊपर जिक्र कर चुका हूँ कि यह एक संक्रामक रोग है जिसे आम भाषा में छूत का रोग भी कहा जाता है जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के शरीर में हवा के द्वारा भी पहुँच जाता है और उसे भी संक्रमित करके बीमार कर देता है। कॉलरा रोग उत्पन्न होने के कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं –

  • इस रोग का संक्रमण कॉलरा वीब्रियो नामक जीवाणु द्वारा होता है जो दूषित जल द्वारा फैलता है।
  • यदि कोई खाने पीने की वस्तुएं संक्रमित होने पर वायरस मनुष्य के शरीर में प्रवेश करके छोटी आंत में पहुँचकर रोग फैलाते हैं। यह वायरस पानी में 3 दिन और नमी वाली जगह पर लगभग 8 दिनों तक जीवित रहते हैं।
  • हैजा रोग को उत्पन्न करने में अपच की सिकायत या बदहजमी का सबसे बड़ा कारण होता है। गर्मी और वर्षा के दिनों में शादी विवाह इत्यादि कार्यक्रमों का आयोजन ज्यादा होता है जिसके चलते व्यक्ति भोजन को अत्यधिक खा लेता है जिसकी वजह से अजीर्ण या बदहजमी की सिकायत हो जाती है।

हैजा रोग किससे फैलता है ये तो आप जान गए हैं और अब में आपको इसके लक्षणों के बारे में भी बता देता हूँ जिससे आपको इस रोग को पहचानने में आसानी हो जाएगी।

हैजा रोग के लक्षण (Haija Disease Symptoms in Hindi):

इस बीमारी की तीन अवस्थाएं होतीं हैं जिनके कारण अलग अलग प्रकार के लक्षण दिखाई देते हैं। हैजा रोग की पहचान निम्नलिखित लक्षणों के द्वारा की जा सकती है –

प्रारंभिक अवस्था

इस अवस्था में रोगी को दस्त लगते हैं और कुछ समय बाद रोगी के दस्त चावल के मांड के समान स्टार्ट हो जाते हैं। इसके पश्चात ही मरीज उल्टियाँ करना शुरू कर देता है। जितना भी खाया पिया होगा वो सब बाहर निकल जाता है और अंत में उल्टियों में पानी जैसा द्रव्य निकलना शुरू हो जाता है।

रोगी के शरीर में पानी और लवणों की कमी होना स्टार्ट हो जाती है जिसकी वजह से शरीर में एंठन महशूश की जाती है। ऐसी स्थिति में रोगी बहुत ज्यादा प्यास लगती है और पानी पीने के तुरंत बाद ही उल्टी हो जाती है

दूसरी अवस्था

इस अवस्था में रोगी को लगातार दस्त और उल्टी होते रहते हैं लेकिन इसमें समय अंतराल बढ़ जाता है। आँखें अन्दर की तरफ घुसी हुयीं, गाल पिचके हुए, ठंडी चमड़ी और सिकुड़ी हुयी अँगुलियों की त्वचा जैसे पानी में ज्यादा देर तक रहने से हो जाती हैं ठीक वैसे ही।

रोगी की नाडी कमजोर हो जाती है और ब्लडप्रेशर भी कम हो जाता है। इस अवस्था में मरीज को बहुत कम पेसाब लगता है। इस स्थिति में हैजा के रोगी का सही समय पर सही इलाज न हो पाए तो वो काल के गाल में समा जाता है।

तीसरी अवस्था

हैजा की इस अवस्था में सही उपचार देने पर रोगी ठीक होना शुरू हो जाता है। उसके दस्त और उल्टियाँ होना बंद होने लगते हैं एवं इसके साथ ही पेसाब लगना भी नार्मल हो जाती है। यदि रोगी का सही उपचार न कराया जाये तो इस अवस्था में उसकी मृत्यु भी हो जाती है।

हैजा के उपचार:

इस तरह के मरीज को निम्न प्रकार की चिकित्सा विधि को अपनाना चाहिए –

  • इस रोग के कारण जिन रोगियों की मृत्यु होती है वो शरीर में पानी की कमी जिसे निर्जलीकरण कहा जाता है इसकी वजह से होती है। इसलिए इस कमी को दूर करने के लिए टेट्रासाईक्लीन या अमृत धारा अथवा डाबर पुदीन हरा देते रहना चाहिए।
  • जितना हो सके रोगी को चलने फिरने के बजाये बिस्तर पर आराम करना चाहिए।
  • रोगी को इलेक्ट्राल पाउडर समय समय पर जब भी प्यास लगे तभी पिलाते रहना बहुत लाभदायक रहता है।

हैजा रोग में क्या खाना चाहिए ?

  • इस तरह के रोगी को ऊपर बताये गए सीरप में से कोई एक syrup का सेवन दिन में कई बार कराएँ। जितनी बार वह उल्टी दस्त करे उतनी ही बार इसका सेवन कराते रहना चाहिए।
  • इस प्रकार के मरीज को जितना हो सके पौष्टिक आहार का सेवन करना चाहिए।
  • यदि रोगी को अत्यधिक प्यास लग रही हो तो उसकी प्यास बुझाने के लिए बर्फ चुसवाएं या फिर जीभ पर ग्लिसरीन लगायें।
  • ध्यान रहे जब तक मरीज को उल्टियाँ होतीं रहें तब तक कुछ भी खाने को नहीं देना चाहिए।
  • ताजे हरे नारियल का पानी और जौ के पानी में नीबू का रस मिलाकर थोड़ा थोड़ा देते रहें या फिर दही की लस्सी में नीबू का रस मिलाकर चम्मच से थोड़ा थोड़ा देते रहना चाहिए।

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