हाथी पांव बीमारी का इलाज, फाइलेरिया का अचूक इलाज

फाइलेरिया क्या है? Filaria treatment in hindi :- यह बीमरी भारत में बहुत ही सामान्य है और यह समुद्र के तटवर्ती इलाकों में जहाँ का मौषम गर्म तथा नमी वाला होता है जैसे बिहार, उत्तर प्रदेश तथा उड़ीसा इन प्रान्तों में सर्वाधिक रूप से हाथी पाँव या फाइलेरिया रोग के रोगी पाए जाते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार लगभग आठ करोड़ लोग इस रोग से ग्रसित हैं। इसकी एलर्जी से इस्नोफीलिया तथा ब्रोन्कोस्पाज्म हो जाता है। माइक्रो फाइलेरिया, मनुष्य की लिम्फेटिक में रूकावट पैदा कर देता है जिसकी वजह से पैरों तथा अन्डकोशों में सूजन आ जाती है। आज में आपको फाइलेरिया के बारे में पूरी जानकारी देने जा रहा हूँ।

हाथी पांव बीमारी का इलाज

इसे हाथी पांव रोग भी कहा जाता है और यह रोग ज्यादतर ऐसे लोगों में होता है जो ज्यादा गर्म और नमी वाले स्थानों पर रहते हैं, ऐसी जगहों को उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र कहा जाता है।

हाथी पांव बीमारी या फाइलेरिया रोग के कारण (Filaria Ke karan):

यह बीमारी ज्यादातर फाइलेरिया ब्रेकाफ्टाई नामक वायरस द्वारा उत्पन्न होती है। इस वायरस के अंडे बीमार व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति में मच्छरों द्वारा पहुँच जाते हैं। यही फाइलेरिया रोग का कारण है।

हाथी पांव रोग किसी भी उम्र के व्यक्ति या महिला में हो सकता है परन्तु आमतौर पर यह देखा गया है कि इस रोग से पीड़ित पुरुष, महिलायों की अपेक्षा ज्यादा होते हैं।

यह बीमारी शरह या सिटी में रहने वाले लोगों को सबसे ज्यादा होता है और जो गंदगी से पटी हुयी बस्तियां होतीं हैं उनमें रहने वाले लोगों को हाथी पाँव की बीमारी सर्वाधिक रूप से ग्रसित करती है।

यह बीमारी किसी को तभी होती है जब वह पाँच से छः महीने से लगातार गंदे और संक्रमित इलाके में रहता है।

कई रिपोर्ट्स में यह देखा गया है कि ये वायरस नर और मादा (मेल और फीमेल) एक साथ मिलकर आधी रात के समय अजीब सा डांस करते हुए किसी भी व्यक्ति को अपना शिकार बनाते हुए हवा के द्वारा उसके शरीर में पहुंचकर ब्लड में जाकर मिल जाते हैं जिसकी वजह से व्यक्ति को फाइलेरिया नामक बीमारी हो जाती है।

ऐसे में रोगी को बहुत तीव्र फीवर आ जाता है। इसमें अचंभित करने वाली सबसे बड़ी बात ये है कि दिन के समय में हाथी पाँव के वायरस मनुष्य के शरीर में नहीं पाए जाते हैं।

इसीलिए फाइलेरिया से पीड़ित मरीज के ब्लड की जाँच आधी रात के समय तब की जाती है जब रोगी गहरी नींद में सो रहा हो। व्यक्ति को संक्रमित करने से लेकर बीमारी के लक्षण उत्पन्न होने तक का समय एक साल से डेढ़ साल तक होता है।

हाथीपाँव के लक्षण या फाइलेरिया के लक्षण और संकेत (Filariasis Symptoms in hindi):

फाइलेरिया की शुरुवात के लक्षण शीत पित्त, अण्डकोशों में सूजन एवं बहुत तेज बुखार हैं। इसमें लसिका ग्रंथियां बहुत ही नाजुक होतीं हैं अंडकोष लाल हो जाते हैं।

इस बीमारी में रोगी को फीवर कंपकंपी के साथ स्टार्ट होता है और दो से पाँच दिन तक लगातार बना रहता है। इसमें सबसे पहले व्यक्ति की जाँघ के बेस में स्थित ग्रंथियों में विकार उत्पन्न हो जाता है।

यह बुखार बार बार इसी तरह थोड़े थोड़े समयांतराल से रोगी को परेसान करता रहता है। यदि ऐसी ही स्थिति बनी रहे तो यह रोग अण्डकोशों में पानी जमा कर देता है और अंडकोष फूलकर बहुत विकराल दिखने लगते हैं।

रोगी के जिस टांग में सूजन होती है वहाँ की त्वचा धीरे धीरे मोटी और खुरदरी होने लगती है। इसके बाद उस जगह पर फोड़े हो जाते हैं और उनमें घाव बन जाता है।

चमड़ी के इस हिस्से पर कभी कभी मस्से भी हो सकता है और त्वचा चमड़े के समान हो जाती है। अण्डकोशों का आकार बड़ा हो जाने के कारण तथा टांग में सूजन हो जाने के कारण कभी कभी वजन इतना ज्यादा बढ़ जाता है कि रोगी को चलने फिरने और हिलने डुलने में भी तकलीफ होने लगती है।

कभी कभी अंडकोशों का वजन 20 से 30 किलो तक का हो जाता है। वैसे इतना ज्यादा डरने की जरुरत नहीं हैक्योंकि इस बीमारी में रोगी की मृत्यु नहीं होती है। लेकिन अंडकोष बड़े हो जाने की वजह से व्यक्ति का रूप बिगड़ जाता है, दर्द होता रहता है और आत्मनिर्भरता लगभग समाप्त हो जाती है।

फाइलेरिया के लक्षण रोगी के टांगों के उपरी त्वचा पर पीड़ा के रूप में देखने को मिलते हैं। रोगी की त्वचा का रंग गहरा और बेरंग हो जाता है।

ऐसे मरीज की टांग हाथी के पाँव की जैसी गोल मटोल और मोटी हो जाती है। वैसे यदि सूजन वाली जगह को दबाया जाये तो उस जगह पर गड्ढा बन जाता है लेकिन हाथी पाँव के रोगी की रोग वाली जगह को दबाने पर कोई गड्ढा नहीं बनता है।

हाथी पाँव या फाइलेरिया की जांच:

इस बीमारी का टेस्ट आधी रात के समय किया जाता है और इसके वायरस का पता निम्न प्रकार की जांचों द्वारा लगाया जा सकता है –

Compliment Fixation – इस जाँच के द्वारा इस बीमारी के वायरस का आसानी से पता लग जाता है।

Intradermal test – इस जाँच से भी त्वचा की जाँच करके इस बीमारी के होने या न होने की जानकारी मिल जाती है।

फाइलेरिया का घरेलू उपचार (Filaria Ke Gharelu Nuskhe):

इस तरह के रोगी को ताजे प्रतिदिन 4-5 ताजे हरे आंवले का सेवन करना चाहिए अथवा आंवले का मुरब्बा सुबह खाली पेट लगातार 45 दिनों तक सेवन करना चाहिए। इसे काफी हद तक बढ़िया फाइलेरिया की दवा माना जाता है।

सूखे अदरक का पाउडर या सोंठ का पाउडर प्रतिदिन लगातार 45 दिनों तक हल्के गुनगुने पानी के साथ सेवन करने से यह रोग नष्ट हो जाता है।

काले अखरोट के तेल की चार पाँच बूंदें आधा गिलास गुनगुने पानी में मिलाकर दिन में दो बार सुबह शाम लगातार 30 दिनों तक पीने से रोगी रोगमुक्त हो जाता है। इसे काफी अच्छा हाथी पांव का इलाज माना जाता है।

सोंठ, सहजन की जड़, देवदास तथा सरसों को पीसकर हाथी पाँव में लेप करने से यह रोग हमेशा के लिए नष्ट हो जाता है। यह फाइलेरिया के घरेलू उपचार में से सबसे अच्छा इलाज माना जाता है।

फाइलेरिया के उपाय:

जो लोग इस बीमारी से ग्रसित हैं उन्हें फाइलेरिया के उपचार के साथ साथ निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए –

  • रोगी को अपने पैरों को डिटोल साबुन और गुनगुने पानी से नियमित रूप से दिन में तीन चार बार साफ करते रहना चाहिए।
  • पैर धोने के तुरंत बाद किसी स्वच्छ कपड़े से पैरों को पोंछना चाहिए जिससे त्वचा पर नमी का प्रभाव ख़त्म हो जाये।
  • पैरों की सफाई करते समय किसी प्रकार के पत्थर या ब्रश का उपयोग नहीं करना चाहिए नहीं तो घाव होने का खतरा उत्पन्न हो सकता है।
  • ऐसे मरीज को सुबह शाम दोनों टाइम किसी गार्डन में हरी घास पर नियमित रूप से टहलना चाहिए और इसके साथ ही कुछ हल्के फुल्के व्यायाम भी करते रहना बहुत लाभकारी होता है।

अंत में यही सलाह दूंगा कि जिसे भी यह रोग हो वो किसी नजदीकी डॉक्टर से परामर्श करें यहाँ पर बताये गए दवायों के नाम सिर्फ और सिर्फ ज्ञानवर्धन के लिए हैं किसी प्रकार की दवा का प्रयोग बिना चिकित्सक की सलाह लिए आपके लिए खतरा पैदा कर सकतीं हैं।

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